कबीर तम्बुओं में लगे एक स्कूल के पास से ग़ुजर रहा था| एक ख़स्ता हाल तम्बु के नीचे बैठे बच्चें को एक मास्टर ने हिसाब पढ़ाते हुए सवाल किया-
“अगर एक कमरे के मकान में सात आदमी रहते हों तो सात कमरों के मकान में कितने आदमी हो होंगे?”
“उनन्चास आदमी?” कई प्रतिभाशाली बच्चे ने सोचकर जवाब दिया|
“बिलकुल ग़लत,” मास्टर ने जवाब दिया|
बच्चे हैरान रह गये|
मास्टर ने कहा, “हिसाब के नये क़ायदे के मुताबिक अगर एक कमरे के मकान में सात आदमी रहते हैं तो सात कमरों के मकान में एक आदमी रहेगा या ज़्यादा एक आदमी एक औरत और दो कुत्ते|”
यह सुनकर कबीर जो अभी-अभी करौल बाग़ से आया था| डिप्लोमेटिक एन्कलेव की रोते हुए चल दिया|
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ज़फ़र पयामी, २०१४, ‘दिल्ली देख कबीरा रोया’, ‘नई सदी की कहानियाँ’ में, क्रष्ण कुमार च्ड्डा (एड.), हार्पर हिन्दी, नौएडा, यू पी, भारत
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